रामप्रसाद बिस्मिल के सीने में आजादी की आग जलती थी, तो एक कवि हृदय भी था। उनकी कविताओं व शायरी में एक ही रस था, आजादी का। उन्होंने अपने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया था। जब उन्हें फांसी दी गई, तब भी उनके होंठों पर देशभक्ति गीतों के बोल ही थे। ‘देखना है ज़ोर कितना’ एलबम पं-रामप्रसाद बिस्मिल की कविताओं की संगीतबद्ध प्रस्तुति है।
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